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Ratna Pandey

Horror

5.0  

Ratna Pandey

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वृक्ष की पुकार

वृक्ष की पुकार

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वृक्ष माँग रहा ऋण वापस

जो उसने हमें दिया था

निरंतर कर्त्तव्य पथ पर चलकर

वह हमारे लिये ही तो जिया था ।


वृक्ष अटल निरंतर देता रहता

शुद्ध हवा के झोंके,

जी ले जीवन तू मानव

मेरे दिए इस ऋण से

वक़्त आयेगा तब माँगूँगा

अपना उधार मैं तुझसे ।

आज दे रहा अपना सब कुछ

इसी उम्मीद में तुम को

कल गर मैं मुश्किल में आ जाऊँ

तुम संभालोगे क्या मुझ को ।


गुज़र गए अब वो ज़माने

जब मैं निडर खड़ा रहता था

डर लगता है मुझ को

अब कोई पास मेरे गर आ जाए

मार कुल्हाड़ी मेरे तन को

मृत्यु लोक ना पहुँचाए ।

हे मानव, माँग रहा उधार मैं अपना

वापस मुझे लौटा दो

करके कोई जतन हमें

इन खूनियों से बचा लो ।


कट रहे निरंतर घोंसले

कम हो गई पंछियों की आबादी

डर लगता है उनको

जिस डाल पर बैठे,

कहीं हो ना जाए उसकी बर्बादी ।


चुकाना पड़ेगा ऋण वापस उनका

आ गई है अब वह बारी

वृक्ष लगाओ हर गली मोहल्ले

आया समय है भारी

ऋण वापस करने की

कर लो अब तैयारी ।


वृक्षों का लहराना,

पंछियों का चहकना

फिर हो जाएगा जारी

दम घुटते मानव को

मिलेगी पुनः शुद्ध हवा में

जीने की खुशहाली ।





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