आत्महत्या
आत्महत्या
अब हर एक चीज़ से दुःख मिलने लगा है
कहीं से भी इन समस्याओं का कोई हल नहीं मिल रहा
सुकून भी छिन्न गया है , रातों की नींदें उड़ गई है।
दिमाग ही बस बातें करता है।
निरंतर बातें करता है , कुछ सुनने को ही तैयार नहीं है।
रातें अंधेरी है और ये बातें गहरी है।
शरीश थक सा गया है , मस्तिष्क शांत नहीं हो रहा।
विचारों की ज्वालामुखी फटने लगी है।
आंसू सुख गए हैं और मैं शांत हो गया हूं।
एक लाश की भांति देख रहा हूं ये खेल
कितने माहिर हैं लोग इसमें।
हंसता हूं मगर जनता हूं , ये सब दिखावा है।
सिर्फ़ बात का जवाब देता हूं , बातें करने का मन नहीं करता अब।
मेरी ओर से इस दुनिया को दिया गया एक तोहफ़ा।
कसूर इनका नहीं है , मेरा है , इसका ज़िम्मेदार बस मैं हूं।
बस मैं अकेला हूं।
कोई इसमें शामिल नहीं है।
मैं ही बस खुद को आग में झोंक रहा हूं।
एक ऐसा मंजर देख रहा हूं , जहां से वापसी का कोई रास्ता नहीं।
"मेरी रूह अंदर से खोखली होती जा रही है।
मेरी आत्मा अब आत्महत्या करने को करती है।"
मेरा शरीर अब पानी की तरह बहने को तैयार हो गया है।
मैं सब जान गया हूं , लोगों के चेहरे , उनकी नियत
एक ही व्यक्तित्व होने के बावजूद भी , मैं एक नहीं हूं।
मेरी रूह , मेरा शरीर, मेरा दिमाग और मेरा मन ,
ये अलग अलग हिस्सों में बंट गए हैं।
नहीं जानता ऐसा क्यों है?
मेरे पास किसी सवाल का जवाब नहीं है।
मैं जानना भी नहीं चाहता , मेरी ओर से इस दुनिया में कोई भागीदारी नहीं है।
"मैं अदृश्य हो जाना चाहता हूं , उन सभी नजरों से जो मेरे होने का प्रमाण है।"
बातें बहुत बिगड़ गई है।
इन्हें नहीं ठीक किया जा सकता।

