उजाड़ सड़क
उजाड़ सड़क
इंसानी बस्तियों से दूर
बियावान के
साथ-साथ
रेंगती वो
वो टूटी-फूटी सड़क
विशाल सर्प सी
फैली
जिसका कोई आदि न अंत
किसने बनवाई
कब बनवाई
क्यों बनवाई
न कोई जानता
न जानने को उत्सुक कोई
क्या कभी कोई गुजरता भी है
इस सड़क से
या सदियों से भुला दी गई ये सड़क
प्रकृति के हवाले कर दी गई
लेकिन प्रकृति भी अछूती छोडे है
इस सड़क को
न कोई पेड़
न कोई बेल
न घास
बस बंजर धरा
सी फैली सड़क
गौर से देखो
देखो कुछ कदमो के निशान
भी बने है उस सड़क के बीच
सुडोल कदमो के निशान
किसी दुल्हन के कदमो के निशान
या किसी
विरहणी के कदमो के निशान
ये पैरो के निशान
बंजर सड़क से जुडी अनगिनत
पगडंडियों पर उतरते दिखते है ये निशान
पगडंडियां जो सड़क से उतरकर
उस मीलो दूर तक फैले
बियावान में समा जाती है
और कदमो के निशान भी
समा जाते है उस घने बियावान में
बियावान जिसे मानव भुला चुका है
या भूल जाना ही उचित है उसके लिए
क्योकि कुछ
युवा गए थे उस बियावान में
कभी भी वापिस न आने के लिए
उनकी तलाश में जो खोजी गए थे
वो भी कभी वापिस न आए
अब वो बियावान
वो सर्प जैसी उजाड़ सड़क
और बियावान से जुडी पगडंडियां
छोड़ दी गई है उनके ही हाल पर
उस बंजर सड़क पर
आज फिर उभर आए है
किसी दुल्हन के सुडोल पैरो के निशान
फिर से छप गए है उन
सर्पीली पगडंडियों पर
निशान जो सिर्फ बियावान तक जाते
समा जाते है उस बियावान में
कभी न वापिस आने के लिए
आज फिर उस बियावान में गूंजेगा
वो रुग्ण विलाप
उस सदियों पुरानी
दुल्हन का रुग्ण विलाप
आज फिर कांप उठेगी
बियावान से दूर बसी बस्तियां
माएँ छुपा लेंगी
अपने बच्चो को अपने आँचल में
बुजुर्ग अपनी कांपती आवाज में
कसम देंगे बस्ती के नौजवानो को
न उस सर्पीली सड़क पर जाने की
क्योंकि
वो उजाड़ सड़क
बंजर ही रहे तो अच्छा है
वो सर्पीली पगडंडिया
सुनसान ही रहे तो अच्छा है
वो बियावान
और उसमे गूँजता
रुग्ण विलाप
वहीं गूंजता रहे तो अच्छा है।

