खेल
खेल
पहले उसने भोली-भाली के
दिल से खेला,
उसने प्यार समझा और माँ-बाप को छोड़ दिया..
फिर उसने उसके दिमाग से खेला,
उसने उसके साथ ताउम्र रहना चुन लिया..
अब उसने उसके जिस्म से खेलना शुरू किया,
उसने मुहब्बत का नाम दे अपनी इज्जत को कुर्बान किया..
अब जी भर गया उसका,
उसके दिल, दिमाग और जिस्म से खेल कर..
अब उसने मौत का खेल खेला,
जिस्म के हर हिस्से को बहुत ही करीने से काट कर रखा..
फिर घूम-घूम कर हर टुकड़े को,
अलग-अलग जगह फेंकने का घिनोना खेल खेला..
वो बाबरी इन सबको उसकी मुहब्बत समझती रही,
और वो शातिर पहले उसके दिल, दिमाग, जिस्म
और उसकी फिर जान से खेल गया..!

