निजभाषा
निजभाषा
दूसरों को देखकर चलते,
पर ना संभले हम नादान।
अपनी भाषा में उन्नति करता,
देखो कहाँ जा पहुँचा जापान।
निज भाषा उन्नति अहो,
ये था भारत का अभिमान।
विदेशी भाषा की हुकूमत में,
हुआ हिन्दी का अपमान।
पाक बेचारा अलग थलग,
फिर भी छिड़कता उर्दू पर जान।
और अंग्रेजी के चक्कर में,
हम लुटा रहे हैं अपना मान।
नेता भी जन रैलियों में,
खूब करते हिन्दी में आहवान।
मंत्री बनते ही जुबाँ फिसलती,
हो जाते हैं अंग्रेजी के व्याख्यान।
आत्मीयता की यह प्रेम भाषा,
आज हो गयी बेजुबान।
जन-जन की अपनी भाषा,
आज ढूंढ रही अपना सम्मान।
हम राष्ट्र के कर्ता धर्ता,
ऐसी हम इसकी संतान।
जिस भाषा में माँ का प्रेम,
विदेशी के लिए क्यों उसका बलिदान।।