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Vikram Singh Negi 'Kamal'

Abstract

4.0  

Vikram Singh Negi 'Kamal'

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लॉकडाउन

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शहर कैसा वीराना हो गया है,

और गाँव फिर आबाद हुए हैं

समय मिले तो सोचना सब लोग,

व्यस्त से मिलनसार कितनों दिनों बाद हुए हैं


मिल नही सकते और मुलाकातें नही,

फिर भी सोचिए कब के बिछुड़ों से संवाद हुए हैं

पूछ रहे हैं सब किस्से खैरियत अपनों की,

कहीं न कहीं सिमटी हैं दूरियाँ न कोई वाद हुए हैं


सब दे रहे अच्छाई मानवता की दुहाई,

जो लूट खसोट रहे थे वो भी अपवाद हुए हैं

प्रकृति,संस्कृति,विश्वास सबको बुला रहा है,

सच्चे समाज सेवकों आज बहुत धन्यवाद हुए हैं


साथ दीजिएगा इस मुश्किल घड़ी में सबका,

संयम छोड़ हठ कर बैठे जो वो बरबाद हुए हैं

दुश्मन (विषाणु) ने नीचा दिखाने की भरसक कोशिश,

हम लड़े जब एक विश्वास से तो फिर आबाद हुए हैं


क्या रखा शहरी विकास में,समझ आया,

जरूरतें तो वही हैं बाकी बेवजह की तादाद हुए हैं

जो कर रहे हैं नि:स्वार्थ सेवा मनुष्य की,,

सम्मान में करोड़ों हाथ,तालियाँ,शंखनाद हुए हैं


कैद होकर न रहना अपनों से बतियाना,

हिन्दुस्तानी हैं प्रकृति को फिर भी साधुवाद हुए हैं

चंद दिनों की ये विपदा है टलेगी जरूर,

धीरज रखिए भारत की मिट्टी से अक्सर विजयनाद हुए हैं।


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