यादों का पिटारा
यादों का पिटारा
ना चाँद की जिद थी,
ना था कार का जज़्बा,
थी एक साइकिल से दोस्ती,
और चाय से याराना।
ना व्हाट्सएप का चक्कर था,
ना फेसबुक का झंझट,
हर रोज जमती थी जब,
महफ़िल यारों की।
ठहाकों की गरमाहट से तब,
दूर-दूर तक
जमी सर्द बर्फ़ भी
पिघल जाती थी।
कभी यदि आये स्वप्न में तुम्हारे,
एक टूटी साइकिल,
और डूबती कागज़ की कश्ती,
तो याद कर लेना मुझे,
ऐ मेरे दोस्त !
फुरसत से मिलेंगे,
और खोलेंगे,
जंग लगा यादों का पिटारा।