न मेरी खता है
न मेरी खता है
न मैंने कुछ खता की है,
न ही मेरा कुछ कसूर है !
सब तेरे इश्क का असर है,
सब तेरे इश्क का सुरूर है !
भटकता था कभी जिन्दगी,
के इस अँधेरे गलियारे में !
गिरते हुए बचाया है कई बार,
मुझे तेरे इश्क के सहारे ने !
ग़मों के इन घने अब्रों में,
तेरा इश्क चाँदनी का नूर है !
हर साँस के चलने साथ मुझे याद,
बस तेरा ही ये पाक नाम आता है !
इस ज़ेहन में तेरा ये नाम मुझे कभी,
तन्हाई में तो कभी सरेआम आता है !
मेरी हर कहानी में, मेरी हर नज़्म में,
और मेरी गज़ल में बस तू ही मशहूर है !
जिन्दगी की इन गहरी चालों ने तो बस,
मुझसे छीन ही लिया था वो सब कुछ!
तुझसे मिला तो लगा मुझे कि इस बार,
जिन्दगी से मैंने हासिल किया है अब कुछ !
तू ही मेरा दिलदार, तू ही मेरा साथिया है,
और तू ही बस मेरी जिन्दगी का गुरूर है !!