ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
घड़ी दर घड़ी खुद का रंग बदलती ज़िन्दगी,
खुशी में झूमती, कभी दर्द में उतरती ज़िन्दगी,
रात सी काली, कभी भोर सी उजली ज़िन्दगी,
नदियों सी खामोश, कभी लहरों सी मचलती ज़िन्दगी।
दो किनारे ज़िन्दगी के, खुशी के और गम के,
इनके रेतो में खुद, डूबती और उभरती ज़िन्दगी,
कभी एक रात के, सौ खाब सी दिखती ज़िन्दगी,
कभी दो छोरों के बीच ही सिमटती ज़िन्दगी।
उम्मीद के दीयों सी अक्सर, झिलमिलाती ज़िन्दगी,
कभी टूटी कश्ती सी भंवर में डगमगाती ज़िन्दगी,
कभी मीठी सी लोरी गा कर सुलाती ज़िन्दगी,
तो कभी डस-डस कर, हर पल सताती ज़िन्दगी।
सात रंग इंद्रधनुष के, खुद में समाती ज़िन्दगी,
दुःख के सर्द चादर को सुख से गरमाती ज़िन्दगी,
कभी खूब रुलाती, कभी खुद पर हँसाती ज़िन्दगी,
घड़ी दर घड़ी, पंकज, एक नया रंग दिखाती ज़िन्दगी।