झूठ संप्रेषित सच की हुंकार
झूठ संप्रेषित सच की हुंकार
बुराई पर अच्छाई की जीत की पुकार हूँ,
झूठ को संप्रेषित करती सत्य का हुंकार हूँ!
मैं अब कोई निपट मिथ्या भरम नहीं साकार हूँ,
मैं एक स्वनिर्मित और सुनिश्चित सा आकार हूँ !
कहीं कागज़ पर व्यथित शब्दों की चीत्कार हूँ ,
तो कहीं फूल के संग पनपता हुआ सुगंधित हार हूँ !
अन्याय के नीचे दबे न्याय की गुंजती हुई दहाड़ हूँ,
मैं खुद से जन्मी हूँ और खुद अपनी ही अवतार हूं!