खुद से परास्त हो गई
खुद से परास्त हो गई
उनको संभालने में इतना अस्त-व्यस्त हो गई,
मेरी जिंदगी न जाने कब अस्त व्यस्त हो गई !
सहज के रखना न आया ख्वाबों के महल को,
धीरे धीरे देखो हर दीवार इसकी ध्वस्त हो गई!
हर रोज छिड़ी नई जंग खुद से मेरे दिलबर ,
लड़ी इतना खूब मगर फिर भी परास्त हो गई !
लगा भी न था कि, मुझे किसकी जरूरत है ,
तकदीर से जो भी मिला उसी में मस्त हो गई !