खुद की कीमत पर.....
खुद की कीमत पर.....
मैं खुद की कीमत पर ही खुद को पाने चला था,
जाने किसको मैं क्या और क्यों बताने चला था,
अरमानों की कीमत सिर्फ समझौते मिले मुझको,
फिर इन्हीं समझौतों से खुद को बहलाने चला था।
बेईमान खुद से रहा ईमानदारी लोगों के हिस्से रही,
किसी सह की ताबीर हो ऐसी तक़दीर नहीं रही,
बहुत नाकामयाब सी हर एक तदबीर रही मेरी,
इन्हीं तदबीर से खुद की तासीर फैलाने चला था।
कई राह मैं चला पर मंज़िल न मयस्सर हुई,
कभी छीन कर भी देखा पर हिम्मत बेअसर रही,
हर ख्वाबों का सिला एक धुंध का गुबार था,
फिर इन्हीं धुंध में खुद को पंकज खिलाने चला था।