"दुर्गाष्टमी"
"दुर्गाष्टमी"
जब सब देवों ने एकत्रित होकर
सर्वशक्ति का किया साथ, विचार
तब मां दुर्गा ने लिया था, अवतार
ओर किया था, महिषासुर का संहार
शुम्भ, निशुम्भ दैत्यों पर चलाई, तलवार
दुर्गम दैत्य का जब मां ने किया संहार
इस कारण भी उन्हें मां दुर्गा कहे, संसार
तब से मना रहे, हम दुर्गाष्टमी त्योंहार
आठवां रूप, मां दुर्गा का करे, स्वीकार
जो मां महागौरी का है, एक अवतार
इसदिन बहु जन, कुल देवी करे याद
जिन्हें दयाहड़ी मां कह, चढ़ाते, फूल-हार
कितना ही गहरा क्यों न हो अंधकार
रोशनी के आगे, अंत में जाता है, हार
जब-जब एकत्रित हुए, सत्य सुविचार
तब-तब हार गया है, झूठा अहंकार
इस दुर्गाष्टमी ले यह संकल्प विचार
अच्छी संगत में रहेंगे, सब ही नर-नार
हर उस मनु भीतर माँ दुर्गा का वास
जो बुराई को नही करे, कभी स्वीकार
बुरे दुष्ट महिषासुर मन की होती, हार
जिसके घट रहे, नित अच्छाई एकाकार
उसके स्वप्न अवश्य ही होते है, साकार
जो करता हो नित नेक कर्म व्यवहार