शमु आज भी ज़िंदा हैं
शमु आज भी ज़िंदा हैं
वह उसका बात बात पर रूठ जाना, पाऊँ पटकना,
ज़िद्द पर अड़ना, एक ही बात की रट लगाना
छोटी बड़ी बात पर चिढ़ जाना, तुनक कर बैठना,
मुँह फुलाना, अपने मन की करना,
कुछ और सोच लेना पर कुछ और कर लेना,
कुछ मचलना, कुछ ज़िद्द पर अड़ जाना
मनाने पर भी न मानना
बड़ा बचकाना था उसका बचपना....
वह मनाने की कोशिश करते
पर उसका अनमने मन से मानना
वह झिड़कते , उसका फिर रूठ जाना
फिर सर झुकाके उन दोनों की
प्रतिक्रिया देखना
फिर मन ही मन मुस्कुराना
ऐसे ही चलता था यह सिलसिला
उनका समझना था थक जाएगी
खुद ही मान जाएगी
था यह उसकी समझ से परे
उसका फिर रूठ जाना
था एक मधुर बहाना ....
वह थर्राती आवाज़, गुस्सा जूंही थूकते
भीनी भीनी मुस्कराहट से पास बुलाते
और वह आटे से लिपटे दो हाथ
ज़रा से फुसलाते, थोड़ा लाढ़ लड़ाते
थोड़ा गाल थपथपाके सीने से लगाते
गीले आँचल से आंसूं पोंछते, थोड़ा माथा सहलाते
थोड़ी सी मुस्कराहट चेहरे पर लाते
थोड़ी मिठास वाली डांट लगा देते
प्यार से कहते, " बच्चे ऐसा नहीं करते "
प्यार के उस समंदर में वह रूठना भूलती
पाऊँ पटकना दूर, झट से गले लग जाती
हठ छोड़ , ज़िद छोड़ , गर्दन ऊपर करके
प्यार से निहारती
तितली की तरह रंग बिखेरते
न जाने वह ज़िद्दीपन कहाँ छोड़ आती
घर का हर कोना महकता
ज़ोर ज़ोर से जब वह ठहाके लगाती.....
आज भी ज़िंदा हें दिल के किसी कोने में
वह मासूम कली
अब वक्त बदला , तस्वीर भी बदली
वह कल की "शमु" आज की "श्यामा" हो गई
कुछ समझे हें उसको कुछ समझे नहीं
कुछ को समझने में है वह लगी...
आज के रूठने पर, नज़रों से परे
कोने में छुपकर जब आसूं है बहाती
याद आता है वह पुचकारना,
वह आटे से लिपटे दो हाथ
वह समंदर सा दिल
वह अपनेपन की छवि
वह मासूम कली कहीं मरी नहीं
आज भी ज़िंदा है दिल के कोने में कहीं
आज भी मनुहार को तरसती है
वह ज़िद्दी बच्ची हर औरत के मन में
आज भी कहीं बसती है ..
देखने समझने वाले बदल जाते हैं
बदल जाती हैं गलियां, बदल जाते हैं रास्ते
वह कल कहीं छूटता नहीं
बस बढ़ जाते हैं फासले
शायद यही असली ज़िन्दगी की कल्पना हैं
मानो तो ठीक , ना मानो तो ठीक........