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Ratna Kaul Bhardwaj

Inspirational

4.7  

Ratna Kaul Bhardwaj

Inspirational

राम! मर्यादाओं से बंदा

राम! मर्यादाओं से बंदा

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72


कौशल्या के थे नैन भरे

अधूरे रहे सीता के सपने

प्रण लिए थे लक्षमण ने

थे विचलित सारे अपने


शर्त में जकड़ा था पिता

कैकई मां का दिल विष भरा

मैं तब किसको पुकारता

था मैं मर्यादाओं से बंदा


इम्तिहान की घड़ी थी

एक मां वचन पर अड़ी थी

"इर्ष्या" फन ताने खड़ी थी

धरोहर पर आन पड़ी थी


वचनबद्ध था एक वृद्ध पित

मन मेरा भी था विचलित

करता मैं किसका अहित

जब था मैं जन्म से ही जागृत


कैकई मात्र एक सौत्र थी

पुत्र मोह से हुई अपवित्र थी

पर परिवार की न शत्रु थी

पिता की परम मित्र थी


एक अध्याय ने रूप लेना था

मनुष्य जाति ने ज्ञान पाना था

नारायण ने रूप धारणा था

सो राम रूपी जन्म पाना था


करता की ही थी करनी

कर्मों के थे हम ऋणी

सीता भी थी इसीलिए जन्मी

सो बनकर आई मेरी अर्धांगिनी


"रावण" एक प्रवृत्ति थी

विशाल जिसकी आकृति थी

परम उसकी शिव भक्ति थी

पर अंह से लिपि पुती थी

 

"प्रवृति" गर गंदी हो

कुविचारों से बंदी हो

लालसा से उसकी संधि हो

और वातावरण न आनंदी हो


और क्रूरता का रूप धरे भक्ति

फिर लुप्त हो जाती सारी शक्ति

धूमिल हो जाती उपयुक्ति

रुख मोड़ लेती है मुक्ति


फिर ईश्वर अवतार धरता है

कुप्रवृत्ति का संहार करता है

धरती का आकार बदलता है

नया युग झंकार मारता है


"राम" मनुष्यरूपी लक्ष्य है

"रावण"दानव रूपी दक्ष है

"मनुष्यता"निरूपित अक्ष है

"मर्यादा" जीवन जीने का कक्ष है


हर युग का है एक विस्तार

ज्ञान दे राम रूपी अवतार

सबसे उत्तम "मर्यादा" का भार

निभाए जो, हो भवसागर पार....



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