पर्यायवाची शब्दों की कविता
पर्यायवाची शब्दों की कविता
अभिमान में जीता जो प्राणी रिश्तो से कट जाता है
अहंकार ही उसके अपने अस्तित्व को डुबा देता है
मिथ्याभिमान से केवल क्षणभर का सुख मिलता है
अहं में होता है जब इंसान अंधकार में खो जाता है
मद में इतना चूर रहता खुद को भगवान समझता हैं
दर्प का भाव उसके मन में कूट-कूट कर भरा होता है
अहंभाव की भावना जीवन में विष समान होती है
आत्मश्वलाघा से उसकी जिंदगी ग्रस्त हो जाती है
दंभ दिखाकर अपने बल का दुराचार जो करता है
अस्मिता का भाव उसकी भाषा में ही झलकता है
मान ना करे जो किसी का उसकी आत्मा भ्रष्ट होती है
अहम्मनयता का त्याग करके ही परम शांति मिलती है।
