पतंग की डोर
पतंग की डोर
मुझे मलाल क्यों होने लगा सबकी अपनी जिंदगी है
सबकी अपनी राहें हैं मंज़िल सबकी अपनी है !
कोई आसान रास्ता तलाशता है
कोई उनमें से अपना हमसफ़र चुनता है !
किसी में दम है अकेले चलने का हौसला है
एक पग में धरा को नाप लेने का !
सब एक जैसे कभी भी हो नहीं सकते
सबों की चाह अलग होती है !
किसी को कोई जंजीरों में कैद
कब तलक रख सकता है सब उन्मुक्त पक्षी हैं
प्रतिबंधों में भला कौन रह सकता है ?
पतंग की डोर को हवा की रुख देखकर
आकाश में छोड़ दो एहसास जब होने लगे
अपने पतंग के डोर को लटाई में लपेट लो !