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Ganesh Chandra kestwal

Inspirational

4.5  

Ganesh Chandra kestwal

Inspirational

ग्रीष्म

ग्रीष्म

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माधव मालती छंद 

विधान- सम मात्रिक छंद 

गणावली- ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ, ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ

         ॥श्री वागीश्वर्यै नमः॥ 

             ग्रीष्म 

             *****

ग्रीष्म तीखा ताप देकर, भू सतह को है तपाता।

भानु अपनी रश्मियों से, नीर भूतल से सुखाता ।

जीव व्याकुल है तड़पते, मृत्यु का है भय सताता।

शक्तिशाली ग्रीष्म भय से, भीत होकर सिर छुपाता॥१॥


राह चलते हर पथिक को, प्यास पल-पल है सताती।

मूल्य जल का तीक्ष्ण गर्मी, इस जगत को है बताती ।

कष्ट आतप का मिटाए, छाँव सबको है सुहाती ।

धर्म मेधा अब मनुज की, प्यास प्याऊ से बुझाती॥२॥


वृक्ष सारे इस धरा के, ताप सारा सोखते हैं ।

पी विषों को वायु के वे, नित कवच को जोड़ते हैं। 

हरितिमा की मोहिनी से, जीव जग को मोहते हैं ।

बैठ छाया में पथिक भी, बाट प्रिय की जोहते हैं॥३॥ 


सूखता रस देह का जब, लोग रस हैं खूब पीते।

नीर जो भी हैं बचाते, जीव जीवन दीर्घ जीते ।

रस बिना सब जिंदगी में, नित्य रहते जीव रीते।

जब धरा पर मेह बरसे, जान लो दिन ग्रीष्म बीते॥४॥


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