मक़सद - ए - ज़िन्दगी
मक़सद - ए - ज़िन्दगी
क्यों है ऐसा जीवन
बेमक़सद बिना मंजिल
बिना लक्ष्य क्या है यहाँ
जीने को हौसला जाने कहाँ से पाते हैं?
चढ़ते तो सभी हैं
उम्र की सीढ़ियों पर
कुछ ही होते हैं कामयाब
बाकि बस यूँ ही जिए जाते हैं।
बगैर मुश्किलों के
क्या सीखना क्या परखना
तजुर्बे भी कभी क्या
कठिनाइयों से भागकर आते हैं।
चलो मना बहुत व्यस्त हो
अपनी - अपनी ज़िन्दगी में
कुछ खोने के डर में रहते हो सदा
समेट कर रखा हुआ क्या साथ जाते हैं।
धूप की तपिश से भागने वाले
बरसात में भीगने से भी कतराते हैं
सब कुछ सहज़ हो सरल हो भला कैसे
जटिलताओं को देख क्यों सीहर जाते हैं।
थोड़ा दौड़ लगाओ अपनी तरफ
जो चाहा कितना पाया सोचो
कर सकते हो अपने अरमान तुम पुरे
अधूरे मक़सद - ए - ज़िन्दगी कबूल क्यों है ?