जाना पहचाना अजनबी
जाना पहचाना अजनबी
जिसकी राहों में हम चल रहे हैं
वो अपनी ही डगर से बेखबर है।
जिसकी ख़्वाहिश हम कर रहे हैं
वो अपनी ही चाहत से बेखबर है।
पीछे मुड़कर ना देखते कभी वो
उसके कदम इस कदर क्यों बेसब्र हैं।
कर हिम्मत आ जाएं जो सामने भी
फेरे लेते बिन मुस्कुराये क्यों नज़र हैं।
चालो मना हैं सबकी पसंद बेहद वो
क्या हम बिल्कुल ही उन्हें नापसंद है।
बन भी जाओ ग़र सबके यहाँ चहेते
बगैर हसरतें क्या जीने में कोई आनंद है।
मुरझाते कभी लहराते हैं ये अरमान मेरे
कैसे तुम तक नहीं पहुंचती इनकी पुकार,
बंद कर रखें हो सारे दरवाजे मन के भले
एक छोटी खिड़की तो दिल में रखो यार।
मिलने की राहें एक हो जाएँ गर तुम चाहो
मंजिल यूँ हर मोड़ पर मुड़ने का नाम नहीं,
अब सुनने-सुनाने के मौक़े और ना गवाओ
अजनबी बने रहना फरिश्तों का काम नहीं।
