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Jhilmil Sitara

Tragedy Others

4  

Jhilmil Sitara

Tragedy Others

रहस्य या उलझन

रहस्य या उलझन

1 min
368



वो कौन था


जो अपनों के बीच


देख मुझे मुस्कुराता था,


और अकेले में


नज़र फेर जाता था।


भरी महफिलों में मेरा


हाथ थाम ले जाता था


फिर तन्हाई में वो


अजनबी बन जाता था।


लाता था तोहफ़े


मेरे लिए सबके सामने


मन को मार जैसे


कर्तव्य हाँ निभाता था।


सच - झूठ कभी मेरा


ना देखा - ना सुना उसने 


अपनी जिंदगी का बोझ


बना मुझे हँसता - रुलाता था।


उसका किरदार रहस्य - सा


मेरे हर पल को बस


उलझाता और चिढ़ाता था।


कहूँ किससे, कहूँ कैसे


सोच बोझिल बन जाता था।


नापसंद को पसंद क्यों


बनाकर आगे बढ़ता


और बढ़ता ही जाता था।


मेरे वजूद का


ऐसा स्वरुप कबतक


औरों की खातिर रखना


मुमकिन है जायज़ है...


उससे जुड़कर, बंधकर


रिश्ते संजोने, स्वप्न सलोन


टूट - टूट बिखरा था।


कसूर इतना क्या मेरा 


है एक बार तो बताओ,


साथ हो तो साथ निभाओ


जाना है तो दिखावे को भी


पीछे ना मुड़कर आओ।


जाने दो या खुद रुक जाओ


दिल से जुड़ो, मन से बंध जाओ


रंग गई मैं जिस रंग में


करो थोड़ी कद्र तुम अब


नहीं सहन होता दो रंग जीवन


रहस्य ना बनो, ना बनो


मेरी सांसों की तुम उलझन।


कभी तो जागेगी चाहत


आएगी देख चमक मुझे कभी तो


जागोगे मेरे सपने लिए।


पहचानोगे कभी तो अपने


रिश्ते की खूबसूरती को।



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