दोस्त तू ही हमसफ़र
दोस्त तू ही हमसफ़र
साथ जिसके होने पर
चेहरा चमकता रहता था,
मुस्कान होंठों से बस
बिखरता ही जाता था,
दिन भर रहकर भी उसके पास
वक़्त कम पड़ जाता था,
होने ना देता जो उदास
दोस्त इतना अद्भुत अनोखा था।
संभाल लेता हर बिगड़ती बात
कितना सुलझा था वो इंसान,
लड़ता - भिड़ता संग उसके मैं
फिर लौट उसी से मन जुड़ता था
समझता था मेरे शौक मेरी आदतें
ना करता शिकायत ना उलझता था
कैसे इतना प्यारा बनाया उसे ईश्वर ने
मैं सोच - सोच हैरान हो जाता था।
लगा सबकुछ कितना सही है जीवन में
तभी समय करवट लेता है परीक्षा लेता है
छीन लिया मेरे जिगर के टुकड़े दोस्त को
ले गया जाने भगवान कौन सी दुनिया उसे,
मैं रोता - चिल्लाता रह गया करता सवाल
कब किस जहाँ फिर मुलाक़ात होगी उससे?
मिला ना कोई जवाब कहीं से सुकूँ दे सके
यादों के समंदर में लहरों सा उमड़े मन में मेरे।
क्या वो कभी ना लौटकर आएगा..
क्या कभी ना मेरे कंधे पर हाथ रख चलेगा
क्या कभी मेरे दरवाजे पर ना आवाज़ लगाएगा
अपनी साइकिल पर बिठा घुमाने ना ले जायेगा
अपनी कमीज पहना कर मुझे हीरो कौन बनाएगा
नई बुलेट की सवारी सिटी बजाकर कौन कराएगा
ना वो कभी भीड़ में टकराकर पीछे मुझे दौड़ाएगा
चाय पकोड़े के पैसे फट से कौन निकाल चुकायेगा
मुक्का मारकर अब कौन मेरे होश ठिकाने लगाएगा
बुझे मेरे चेहरे की रौनक अब कौन बन जगमगाएगा
किधर तलाशूँ तुझे इतना तो बता जा मेरे दोस्त
एक बार तो वापस आकर गले लगा ठंडक मिले
सपनों की लुकछिप दहलीज़ पर आस लगाए हूँ
मिलकर कह दे तू मेरी किसी बात से ख़फ़ा नहीं
फिर बढ़ाएगा दोस्ती का हाथ मेरी तरफ जोश से
खिलखिला जाएगी तड़पती बिना तेरे रूह तक मेरी
समझता है ना तू मेरी हर हालात जो है बिना तेरे
मांग लेता हर जर्रे से तुमको मैं मेरे हमसफ़र।
