हकीकत
हकीकत
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किया तकदीर ने यूं लोगों के हवाले
था गहरा अंदर अंधेरा बाहर उजाले
उजालों से मेरी भी दहलीज थी उजागर
रहते थे ताक में पर्दा गिराने वाले
मैं उनके जाल में उलझा रहूं हमेशा
जाल ऐसा बुन रहे हैं जाल बुनने वाले
पत्थरों से गुज़र कर मैं पहुंची हूं जहां आज
टूट जाएंगे खुद ही अब मुझे तोड़ने वाले
वे मेरे हौसलों से नहीं वाकिफ अब तक
हकीकत में खुद परेशान हैं सताने वाले