यह दौर
यह दौर
है दौर यह अलग लोगों का
इतनी सादगी अच्छी नहींं
खंजर उनके हाथों में हो
और नजरें हमारी झुकी हुई
उनकी चाल उनके मनसूबे
काली चादरों से हैं ढके हुए
यहां झूठ ज्यादा बिकता है
सच की हौसला अफजाई नहीं
सरफिरे नादान हैं वे
जिन्हें वफा की आज तलाश है
ख्वाब है यह बुझती आखों का
चाहत दिलों की बेमानी हुई
हजारों, लाखों उलझनों में हैं
कोशिशें भी नाकाम है
जिंदगी काटना दुश्वार है
दिलों की बहुत दिल्लगी हुई
सोच अपनी बुलंद तो है
पर तन्हाई की गिरफ्त में है
न आए दिल किसी गफलत पर
है इरादों की डोर अभी कसी हुई
मंजिल पाना खालिस मुक्कदर नहीं
ठोकरों की भी है कुछ मेहरबानी
जलजलों से जो टकराए हो
चुभती हैं उन्हें खामोशी भी
अर्जियों के बिछे मजारों में
घुटन दफी है, अश्क हैं सूखे
यहां एहसासों का मोल न कोई
चल दिल गुज़ार जिंदगी और कहीं....