प्रासंगिक गांधीवाद
प्रासंगिक गांधीवाद
हे सेवाग्राम के विश्र्व राजनीतिक संत,
तुने कर दिया कमाल,
दिलाके स्व: राजनीतिक तंत्र, बिना वस्त्र,अस्त्र व शस्त्र,
हे सेवाग्राम के विश्व राजनीतिक संत।
दे दिया हमें चलाने स्वशासन का लोक तंत्र,
हुआ मदमस्त देशवासी देखकर गण तंत्र
तेरा कमाल का रहा असयोग, सत्य,नैतिकता,
और अहिंसा का नया मंत्र,
हे सेवाग्राम के विश्र्व राजनीतिक संत।
जन –जन को दिया सत्य,नैतिकता अहिंसा और भाईचारा,
देशभक्ति,सहिष्णुता,सहकारिता,ग्राम-उद्योग,
व राम राज्य का अनोखा नारा,
देशि-विदेशियों को लगा बहुत प्यारा और न्यारा,
हे सेवाग्राम के विश्र्व राजनीतिक संत।
सच है,अहिंसा ,असहयोग,नैतिक बल,
व विश्व बंधुत्व से दुश्मन हारा,
दुनियां में अमर हुआ, माहात्मा और गांधीगिरी का नारा,
लेकिन तेरे सपुतों ने किया गांधीगिरि से किनारा,
हे सेवाग्राम के विश्र्व राजनीतिक संत।
तुने सिखाया स्नेह, भाईचारा,अहिंसा,
देशभक्ति, सहिष्णुता और सत्य का पाठ।
लेकिन बापू तेरे सपुतोने, हिंसा, लुट्मार,क्षेत्रवाद नकक्ष्लवाद,
आतंकवाद और भ्रष्टाचार से, शासन चलाने कि बांध लि है गांठ,
हे सेवाग्राम के विश्र्व राजनीतिक संत।
हे बापु ,देखते- देखते- क्या कमाल का लाया,
तेरे सपुतोने आधुनिक प्रजातंत्र,
लुप्त हो गया,शांति, सत्य, अहिंसा अमन चैन,
नैतिकता,भाईचारा,और राम्रराज्य का तंत्र,
हे सेवाग्राम के विश्र्व राजनीतिक संत।
सच है दुनियांने किया, गांधीवाद को शत –शत नमन।
और अमलसे फला-फुंला विदेशिओं का चमन।
जो कभी था वहां असाध्य, बन गया वहां वर्तमान,
रच और बन रहा है तेरा प्यारा वतन,
आतंकवाद,नक्ष्लवाद और भ्राष्टाचार के,
अनोखे नये-नये किर्तिमान।
हे सेवाग्राम के विश्र्व राजनीतिक संत।
हे बापू क्यों इस देशमें नहिं रहा, अभी गांधीवाद प्रासंगिक।
क्युंकि तेरे बतलाएं मंत्र,तंत्र और वाद का, दिख रहा है असर आंशिक।
हे सेवाग्राम के विश्र्व राजनीतिक संत।
गांधीवाद ना था, है, ना रहेंगा काल्पनिक,
वह था,है और हमेशा रहेंगा दार्शनिक।
अगर हम चाहते अमन, चैन,खूशहाली वास्ताविक,
तो आज भी गांधीवाद है प्रासंगिक।
हे सेवाग्राम के विश्र्व राजनीतिक संत।
