शब्दों का हेर फेर
शब्दों का हेर फेर
शब्द जब अपना रूप बदलते
और होती इनमें जब हेर फेर
आदमी आदमी न रहता है
मंज़र बदलने में न लगती देर
शब्द हैं कई विरले ऐसे
कानों में रस गोले होले होले
शब्द कई चीर दे मन को
उभारे मन में दहकते शोले
शब्द जब रूप बदलता
बन जाता है बस गाली
तीर छूट जाता है ऐसा
लौटता जो नही कभी खाली
बस पल भर में आदमी
मवाली बनकर रह जाता है
शब्दों का हेर फेर ही तो
अंदर का अंधकार दर्शाता है
दिलों को दिलों से जो जोड़ते
वह अक्षर कभी न उछल कूदते
फूटती हैं धाराएं भवनाओं की
मन के खलियान फलत फूलते
समझो व भूजो, गर जुड़ना है
"ज़िंदादिली " है शब्द महान
कसौटी पर खरा उतरे सदा
करदे जीना बिल्कुल आसान
क्या मेरा तेरा, इसका उसका
वाकई में रखता है पहचान
अरे ज़िन्दगी है चंद दिनों की
बनाकर रखो, न जताओ एहसान
साँसों की गिनती पर
कब किसी का है ज़ोर चला
रुक जाती हैं साँसे जब
सब ठाठ वहीं खत्म हो जाता
मिलजुलकर रहने से ही
रस्ते खुल जाते हैं प्रगति के
चलो कर्म करें, नम्र बनें, शब्दो को तोलें
अनमोल हैं चंद पल ज़िन्दगी के।
