मातृ पथ की सह- गामिनी
मातृ पथ की सह- गामिनी
तेरे गर्भांबुधि में बस गई थी मैं एक छोटी सी बिंदु,
गागर में सागर समाकर जनम दिया तू है ममता सिंधु।
सह कर जनम भर की असीम पीड़ा,
सोची थी हर पल पार कराने मेरे बेड़ा।
मेरे अवतरण में पाई तू जनम भर की खुशी,
तुझ बिन होगा कौन जीवन में रस- ऋषि?
त्यागा हर पल सारे संसार की सुख-सुविधा,
मानो मैं ही हूँ जनम भर की तेरी नित संपदा।
तुम हो ममता का अगाध अनंत आसमान,
हूँ मैं तेरे आँचल में बसा एक छोटा सा विहग समान।
तुम ही हो मेरे मनोबल तुम ही हो मेरा सहारा,
तुझ बिन मेरे जीवन में है सिर्फ अंधियारा।
हो तुम वात्सल्य पथ की सौदामिनी,
मैं भी हूँ तेरी मातृ-पथ के सह-गामिनी।
संप्रेषण किया मातृत्व का सप्रेम सुधारस,
प्रवाहित है ये नित संसार में आसेतु हिमाचल।
संसार में मातृ ममता विहीन स्थित है न कोई प्राणी,
हर जीवी है असीम मातृ प्रेम की सदैव चिर ऋणी,
अभिवादन है अटल ममता मातृत्व की, सदा सर्वदा।
हे माता मिले तुझे नित दिन भगवदाशीश की अमित संपदा।