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Anuradha Keshavamurthy

Inspirational

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Anuradha Keshavamurthy

Inspirational

भरी है इच्छा प्रकृति के कण-कण में

भरी है इच्छा प्रकृति के कण-कण में

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प्रकृति- पुरुष की इच्छा से जन्मा है मानव,

इच्छाओं के जाल में फँसकर हुआ है दानव।


कुछ मिले तो ओर कुछ की लालसा,

भागता रहा हर पल काया वाचा मनसा।


फलित होने की इच्छा से कली खिलती,

उस पर मंडराते पतंग की है क्या गलती।


स्वर्णिम हिरण की आस से माँ सिया हुई भौचक,

नारी की लालसा से ही मारा गया कीचक।


विश्व प्रभुता की आशा से भ्रमित धुरंधर,

कालातीत माना स्वयं को सम्राट सिकंदर।


भरी है इच्छा प्रकृति के कण-कण में,

इच्छाओं का समंदर छुपा है मानव के मन में।


इच्छाओं के मृगतृष्णा के पीछे भागकर,

जीये है जीवन की क्षणभंगुरता को भूलकर।


कीचड़ में फंसे जीव जंतुओं जैसे,

इच्छाओं के जाल में फँसा है वैसे।


आशा रूपी छेदित नाव में चलकर,

पारकर पाए क्या कोई, जीवन सागर?



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