अंबा सन्मति दे,वरदे
अंबा सन्मति दे,वरदे
काश्मीर पुरवासिनी शारदे,
अंबा सन्मति दे, वरदे।
जीवन वीणा झंकृत कर दे।
लय,तालयुत श्रुति भर दे, ।।1।।
वीणा वादिनी हे जगदंबा,
नाद सुवाहिनी माँ शारदांबा।
सकल कला विशारद, जननी,
जन मन सद्बोध प्रदायिनी। ।।2।।
कर में अलंकृत माला जप-मणि,
हे कमलासनि जगदंबा वाणी,
सुशोभित कमंडल हस्त धारिणी,
शुभ्र श्वेत वस्त्र विभूषिणी रागिनी ।।3।।
विद्याधीश्वरी वीणा पाणि,
विधि प्राणेश्वरी अंबा जग त्राणी।
जगदोद्धारिणी माँ तू कल्याणी,
नित नमन हे शारदा मातारानी। ।।4।।
पुस्तक धारिणी सुज्ञान रूपिणी,
भक्त जन अज्ञान तम हारिणी।
सुज्ञान ज्योति भर दे माते,
मुनिजन वंदिता हे शुभदाते। ।।5।।
वरदा भय हारि, माँ गीर्वाणी,
सु रुचिर वदना, तोयज नयनि।
हरि,हर ब्रह्म देव से वंदिता,
कोमल गात्रा, परम पुनीता। ।।6।।
सृजनहार के मनोल्लासिनी,
हे विरिंचि के प्रिय अर्धांगिनी।
विद्या-बुद्धि नित प्रदायिनी,
कोटि नमन हे भव-तारिणी। ।।7।।
मयूर वाहनी माता वाणी,
मराल गामिनी, हे वर गुण-मणि।
सुर,नर,किन्नर से नित वंदिता,
तव चरण में माँ मैं शरणागता। ।।8।।
सकल पाप हारिणी जननी,
हे शुभदे भगवती ब्रम्हाणी।
शरणागत रक्षक माँ कल्याणी,
कुमति मत दे हे जग-तारिणी। ।।9।।
सुज्ञान पुंज के आलोक प्रदाते,
अज्ञान तिमिर नित हर दे माते ।
विमल मति दे हे माँ भगवती,
पावनी जगदंबा देवी सरस्वती। ।।10।