आस लगा आई तेरे द्वारे।
आस लगा आई तेरे द्वारे।
हे गुरुवर, करुणा सागर,
हो तुम ममता के निज आगार।
मन के सारे मैल मार्जन कर,
उठा दो मुझे ज्ञान शैल पर। ।।1।।
भवितव्य का हो लक्ष्य प्रदर्शक,
हे जीवन के सत्पथ दर्शक ।
मिटाकर मन का अज्ञानांधकार,
करा दो निज-ज्ञान का साक्षात्कार। ।।2।।
हो तुम ज्ञान ज्योति के द्योतक,
है ज्ञान वाहिनी के सम्यक प्रवाहक।
हे त्रिमूर्तियों के रूप साकार,
तेरी महिमा है नित अपरंपार, ।।3।।
दुष्कर है यह संसार-जलधि,
व्याप्त जहाँ तेरे नाम- निधि।
तू ही हो हे गुरु, कुशल खेवैया,
पार करा दो भव से नैया। ।।4।।
जकड़े हैं माया, मोह – जंजीर,
सुत, वित्त, वैभव – प्राचीर।
कभी नहीं होंगे ये सब स्थायी,
तेरे आसरे जीवनदायी। ।।5।।
भव बेड़ा है कांटों की सेज,
चुभन से हूँ घायल हर रोज़।
तुम हो भव-रोग वैद्य,
दूँगी मेरे निर्मल काया ही नैवेद्य। ।।6।।
जीव कुसुम मुरझा हो मुक्त।
चरणार्पित पुष्पांजलि युक्त।
आस लगा आई तेरे द्वारे।
कष्ट हरो हे गुरु मेरे सारे। ।।7।।
तोड़ कर सारे भव बंधन,
लिए आत्म का प्रसन्न स्पंदन।
हर्ष से पुलकित है ये जीवन,
हे गुरु, तुझे मेरे शत-शत नमन। ।।8।।