हुनर
हुनर
चिड़िया सा चहचहाना,
मैना सा गुनगुनाना।
फूलों की तरह घर
आँगन को महकाना।
खुशियों का हँसी तराना
इन्हें कौन सिखाता है।
बेटियों को ये हुनर
न जाने कहाँ से आता है।
सिमट कर रहना,
संभल कर चलना।
पलकों में संजोना
शर्म का गहना।
आँचल को सँवारने का
अदब इन्हें कौन सिखाता है।
बेटियों को ये हुनर
न जाने कहाँ से आता है।
माँ की आँखों का
दर्द जानना।
पिता के ह्रदय का
मर्म जानना।
छोटों की शरारतों को
छुपाने का सबब
इन्हें कौन सिखाता है।
बेटियों को ये हुनर
न जाने कहाँ से आता है।
रिश्तों को सहेजना,
घर को सँवारना।
आंसुओं को पीना,
घुट-घुट कर रहना।
दूसरों के लिये
जीने का सब्र
इन्हें कौन सिखाता है।
बेटियों को ये हुनर
न जाने कहाँ से आता है।