मेरी हिन्दी
मेरी हिन्दी


सुर के ब्रजधाम की गोधुरि सी,
मीरा के गिरधर की मिसरी सी,
तुलसी की चौपाइयों की लड़ी सी,
कबीर की साखियों की सधुक्कड़ी सी,
जायसी के सूफियाना अंदाज सी,
बिहारी, पद्माकर के श्रृंगारी साज सी,
खुसरो की मुकरियों की खड़ी बोली सी,
प्रेमचंद की रेशमी मखमली भोली सी,
ऐसी हिन्दी मुझे पसंद है और आपको...
भारतेन्दु के नाटकों से सजी सी,
द्विवेदी की "सरस्वती" से मँजी सी,
"प्रिय प्रवास, "साकेत"के विरह से भीगी सी,
"कामायनी", "जूही की क
ली से" पगी सी,
पंत से पल्लवित होती प्रथा सी,
महादेवी की नीर भरी व्यथा सी,
ऐसी हिन्दी मुझे पसंद है और आपको..
दिनकर की राष्ट्रप्रेमी हुंकार सी,
राकेश के आधे- अधूरे प्यार सी ।
बच्चन के मधुर हालावाद सी,
नागार्जुन के सरल समाजवाद सी,
अज्ञेय, भारती, भीष्म की नई सोच सी,
रेणु, सुभद्रा, मन्नू, माखन के ओज सी,
कभी सीधी - सादी कभी अक्खड़ सी,
कभी मनमौजी कभी फक्कड़ सी,
ऐसी हिन्दी मुझे पसंद है और आपको...