साहित्य
साहित्य


साहित्य एक अग्निहोत्र है,
आहुति होती है जिसमें सृजन की,
संस्कृति से ली जाती है समिधाएँ,
परंपराओं से बनता
है हविष्य,
कलारूपी होता है जिसमें घृत,
संस्कार,आचार-
विचार, व्यवहार,और रीतियों का होता है पंचगव्य,
हृदय के भाव बन जाते है मंत्र और श्लोक,
लोकमंगल की कामना से होती है इसकी पूर्णाहुति,
जिससे सुरभित होता है दिग-दिगन्त,
हर युग में, हर कल्प में,
वेद, उपनिषद पुराणों और स्मृतियों के रूप में रहता है जीवंत,
यह वांग्मय दुलारता है कई सभ्यताएं।।