STORYMIRROR

Shalini Badole

Tragedy

4  

Shalini Badole

Tragedy

संवेदना

संवेदना

1 min
228


आज लेखनी हो रही निःशब्द,

शब्दों के अर्थ सारे मौन है।

वीभत्सता पहुँची अपने चरम पर ,

सकारात्मकता हो रही

गौण है।


हृदय द्रवित हो उठे हैं,

है ईश्वर!यह कैसा अनर्थ है।

चाहे लाख दिलासा दे सबको,

मगर मन को समझाना अब व्यर्थ है।

ना कोई कोलाहल ,ना रुदन का शोर है,


देखो काल का दानव पसरा चहुँओर है।

हे राम ! निकालो इस दावानल से,

तुम्हारे हाथों में अब हम सबकी डोर है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy