अच्छी औरत
अच्छी औरत
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अच्छी औरत भी कभी
कुछ नहीं भूलती।
वो सिर्फ
ढक लेती है उसे
जो चुभता है।
कभी दो पल के
प्यार के नीचे,
कभी शर्मिंदगी के
ढेर के नीचे।
कभी गुस्से में
खुद ही दबा देती है,
कभी रो रो कर
धुंधला देती है।
मुस्करा कर
टालती रहती है,
पर हर बात
बनी रहती है,
उसकी हर
सांस के साथ,
उसकी हर
आस के साथ।
वो सिर्फ
अंतस में बसे त्रास को
बाहर फूंकते हुए,
जलाती है कभी कभी
रोटियां चूल्हों पर।