खबरें
खबरें
रोज हंगामों से भरी खबरें
सनसनी वारदातों से बनी खबरें
सोचता हूँ जिन्दगी भी होगी कहीं
या दबी होगी कहीं खबरों के तले
आज फिर खबर है कि हंगामा होगा
वह ऊँचा है या वह नीचा, तय होगा
बाजार होगा, मगर दूकाने होंगी बंद
इस तरह सड़क पर शक्ति प्रदर्शन होगा
फिर छपी है किसी के लुट जाने की खबर
फिर लिखा है कि वह पिछड़ी जाति का है
अरे खबरनवीसों, इतने सियासी तो ना बनो
लूटते वक्त कौन किसी की जात पूछा करता है
लोग भोले थे तब भी इतने सियासी तो ना थे
देश जननी था मगर लोकजन खैराती नहीं थे
लूटते थे लुटा करते थे हर तबके तब भी
नाम होता था खबरों में तमगे खैराती नहीं थे
सियासत भी बड़ी साइज की दुकानदारी है
बिसातों पे रंक से राजा की होड़ जारी है
काम करना ना करना भ्रम पैदा करते रहना
यह जुबां का व्यापार है बाजार में बने रहना
सड़क है, इसे सड़क ही रहने दो
सियासत है तो इसे, सिरमौर चुनने का जरिया रहने दो
अब तो बदलो वतन की झूठी कसमे खाने वालों
यह जो बाजार है यहाँ जरूरी सामान बिकने दो।