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दयाल शरण

Others

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दयाल शरण

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परिपूर्णता

परिपूर्णता

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सबमें सब कुछ

अगर होता

यायावर कोई

नहीं होता

खुद ही से इश्क

खुद ही कर लेता

और कोई हमसफर

नहीं होता


रूह सुकून की

गर इतनी आदी होती

कोई मुख्तसर नया

नहीं लिखता

ना काफियों का

अशआर बन पाता

फिर कोई ताजा 

गज़ल नहीं कहता


जिंदा हूं 

हलचलों से

दिखता है

मर ही जाता

अगर बिना

हलचल रहता

तमाम मौसम

यूं ही गुजर से जाते

कोई कसीदे

उन पर नहीं कहता


मुझको मालूम है

मुझमें सौ 

कमियां हैं

वरना मैं तो

कोई खुदा होता

सोचता रोज 

सिर्फ अपने बारे में

तुमसे लड़ने को

मैं नहीं होता


खुद ही से इश्क

खुद ही कर लेता

और कोई हमसफर

नहीं होता........



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