बेजुबां
बेजुबां
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बेजुबां
हो गए
हम-आप
कहीं
कोई
कमी-सी
है
हाथ
आंखों को
छुए
तो लगे
कोई
नमीं-सी
है।
मुठ्ठी में
भिंचे
आप
एक
जुगनू
जो
लाए हैं
सोचा था
कुछ
अच्छा
मगर
दुपहरी
में
आए हैं।
बेवजह
चौखट पे
फेरे
अब
इंतजार
किसका है
वो
अब भी
लौटेगा
मुसलसल
इंतजार
रब का है?
मैं
लिखता
जाऊँ
बेचैनी
गजल-सी
आप
पढ़ते
हैं
अजब
माहौल
में
गजब का
खयाल
अच्छा
है।