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दयाल शरण

Others

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दयाल शरण

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दायरा

दायरा

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आपके बारे में इतना सोचा

ख़ुद के बारे में वक्त मिला ही नहीं

पलक पे रख के रात भर जागा 

नींद को आने का वक्त मिला ही नहीं


छूट जाना ख्वाबों का अक्सर

दूसरा कोई ख्वाब फिर जँचा ही नहीं

जो तलब सी बन के है जुबां पर

स्वाद ऐसा जो कभी गया ही नहीं


तुमसे लड़कर और जाते कहाँ

हारने-जीतने का मजा आता ही नहीं

अंगुलयाँ फेरते क्या रेत पे कहीं

कलमकारी से कुछ नया रचा ही नहीं


फितरती है, ज़रा दिमागी है मिजाज़

ज़माने का कोई रंग चढ़ा ही नहीं

मीर की ग़ज़ल समझ के लोग पढ़ते रहे

हमारी ओर खयाल किसी का गया ही नहीं


आपके बारे में इतना सोचा

ख़ुद के बारे में वक्त मिला ही नहीं

मीर की ग़ज़ल समझ के लोग पढ़ते रहे

हमारी ओर ख़याल किसी का गया ही नही।


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