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Pooja Agrawal

Drama Inspirational

4.8  

Pooja Agrawal

Drama Inspirational

बदलाव एक संघर्ष

बदलाव एक संघर्ष

2 mins
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माँ तू रब का रूप है

मैं क्यूँ नहीं बन पाती तेरी तरह

वो सहनशीलता, वो सहिष्णुता, वो ढाँढ़स,

वो दर्द को सहने की असीम शक्ति।


होठों पर ओढ़े मुस्कान,

एक आस ,एक विश्वास के साथ झुकती हुई,

लड़ती हुई अपनी दुविधाओं से,

खामोशियों से लिपटे हुए तेरे लफ्ज़,

न चाहते हुए भी सब कुछ कहते हुए।


दौड़ती-भागती जैसे कुछ भी,

तेरे बिना न हो सकेगा,

सब की खुशी मैं तेरी खुशी,

मिला तुझे वो सम्मान ?

जिसकी तूने आशा की थी,

जिसकी तू हकदार थी।


पर अपने अंदर हजारों ख्वाहिश

को दबाते हुए,

क्या यह त्याग सही था ?

सब चल चले अपने रास्ते,

पर माँ, रह गयी तू अकेली।


आज भी तुझे वहीं पाती हूँ

नया दौर, नई विचारधारा,

और तू वहीं, सब कुछ खामोशियों

से सुनते हुए, पिघलते हुए अंदर से।


अब तो बस कर,

सोच क्या बन गयी तू ?

तूने मुझे सिखाया था,

आज में तुझे सिखाती हूँ।


अपने अंदर प्यार रखकर भी तू,

अपनी आवाज उठा सकती है।

अपने स्वाभिमान के लिये बोलना

जरूरी है, जरूरी है,

पुरुष प्रधान समाज मे सर उठा के जीना।


आज समझ आता है मुझे,

आज देख मैं भी वही आ खड़ी हूँ,

तू जिये जा रही पर

मैं तिल-तिल मर रही हूँ।


अब और नहीं माँ,

मैं तेरे संस्कारों के साथ भी

तो अपने स्वाभिमान के लिये

आवाज उठा सकती हूँ।

अब नहीं सहूँगी अत्याचार।


अपनी बेटी को भी उस आग में नहीं धकेलूँगी,

जिस में मैं झुलस गई।

अपनी मोम की गुड़िया को

दूर ही रखूँगी उस आग से

जो मेरे अंतर्मन को आज भी जलाती है।


बदल जा माँ और मुझे भी बदलने दे,

अपना समय क्या आएगा माँ

अपना समय आ गया है।।


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