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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama

4.5  

Kunda Shamkuwar

Abstract Drama

यादों की कश्मकश

यादों की कश्मकश

1 min
385


ये कविता मैनें अपनी यादों से सजाई है...
यह मेरी जिंदगी का एक छोटा सा टुकड़ा भर है...
उस बेहतरीन पल का...
उस सोच का...
उस पल के अहसास का...

यादें भी अजीब होती है...
बावजूद वे पल दोबारा लौट कर नहीं आ सकते
यादें लौटकर वहाँ जाती है बार बार ....
बचपन की गलियों मे...
दोस्तों के पास....
माँ बाप के पास...

पेड़ से कच्चे-पके, लाल-पीले और खट्टे मीठे बेर तोड़कर खाने वाले वे दिन...
अमियों के फाँकों में नमक मिर्च लगाकर खाने वाले वे दिन...
वे बेफ़िक्री वाले दिन...
उन दिनों की यादें...

कभी कभी मुझे लगता है इन यादों को मैं सहेज कर रखूँ...
हाँ, आज के बीतें दिन को बुढ़ापे तक खींच कर ले जाऊँ..
लेकिन मैं यह भी जानता हूँ कि चीजें अक्सर छूट जाती है...
कुछ को भूल जाना ही बेहतर होता है...
याद करने की और भूल जाने की यात्रा अनवरत चलती जाती है

कभी कभी याद करने का और भूल जाने का संघर्ष चलता जाता है...
ये संघर्ष ही तो जिंदगी है...







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