नारी
नारी
नारी तो है, स्वतंत्रता का एक ऐसा, व्योम
जिसके अंतर्मन में समाया, ब्रह्मांड ओम
ये चराचर जगत मातारानी की एक भोम
हर नारी में मातारानी का एक अंश रोम
धधकती ज्वाला को बना देती है, वो सोम
बाहर से कोमल भीतर से पत्थर की भोम
नारी है, लोक और परलोक की ऐसी कौम
जिसके भीतर पलते प्रलय, निर्माण, जोम
फौलादी को भी बना देती है, वो तो मोम
नारी के भीतर साहस का भरा है, व्योम
नारी का जहां आदर, वहां बसते देव हर
वो बन जाता देवालय, सा पवित्र घर ओम
चाहे पुरुष कितना ही सौर करे, ज़माने भर
अंत मे घर पर चलता महिला का रोब, सर
हंसकर मानो या मानो आप श्रीमान रोकर
नारी से है, खुशी, नारी बिना सूना-सूना है, घर
महिला से न लो पंगा, यह है, ऐसा शक्तिघर
जिसके आगे फौलादी हो जाता है, जोकर
श्री हरि नारायण, प्रभु के छप्पन भोग पर
एक तुलसी दल भी होती है, साखी मण भर
कह रहा है, साखी, चाहिए सुख-शांति गर
नारी को समझो, इसका करो तुम आदर
नारी है, वाकई मे है, एक ऐसी है, तलवारी
जिसके आगे सारी की सारी दुनिया, हारी
जो छोड़ो व्यर्थ लोभ, नारी को मान लो लोग
आज क्या, कल क्या नारी ही है, असल तोप।