माना कि
माना कि
माना कि हम खामोश है अब तक
वजह तो कुछ रही होगी इस चुप्पी की
राज अगर राज ही रहने दिया जाता तो
अच्छा था, मगर चुगली कर दी उन
आंखो ने जो बात आपने चाही थी छुपानी
पढ़ने लगे अब हम नजरों की भाषा को
बोलने से बिगड़ जाते है हालात, पर
रिश्ते शिकार न हो जाए गलतफहमियों के
मौन रहकर सब निगाहों से तौलते रहते है।
सच और झूठ का फैसला तो वक्त लेगा
हम तो बस एहसासों को महसूस करते है
फ्रिक नहीं है कोई क्या सोचेगा ? सिर्फ
अपने दिल की हर बात सुना करते हैं।।