पिता
पिता
पिता है,तब तलक लगता आसमान है।
पिता बिना अधूरा लगता यह जहान है।।
जिनके पिता है,वो खुशनसीब इंसान है।
कर लो पितृ-सेवा,यह जिंदा भगवान है।।
जिन्हें रहता अपने पिता पर अभिमान है।
उन चेहरों पर रहती नित नई मुस्कान है।।
पिता से इस पत्थर से जीवन मे जान है।
पिता घर की छत और,पिता आसमान है।।
मेरे पिता ही दुनिया मे मेरा स्वाभिमान है।
मेरे पिता मेरे इस जीवन के अभिमान है।।
इस मुरझाये जीवन के वो ऐसे बागवान है।
खुद रह,भूखे-प्यासे देते हर सुख संतान है।।
पिता मंदिर की घण्टी,मस्जिद की अजान है।
इनकी कद्र करे,इनसे मिला जीवन वरदान है।।
जिनके पिता नही है,ज़रा उन्हें पूंछो क्या हाल है।
पिता बगैर भी क्या जीवन होता खुशहाल है।।
पिता साखी वट वृक्ष जैसा करता देखभाल है।
सर्दी,गर्मी,वर्षा हर ऋतु से रखता हमारा ख्याल है।।
पितृ-सम्मान करो,इनके चरणों मे हर तीर्थ स्थान है।
जो करे पितृ पूजा,जो माने पितृ आज्ञा श्री मान है।
वो श्री राम,परशुराम,श्रवण जैसा बनता महान है।।
पितृ चरणों मे स्वर्ग,इनके चरणों मे मुक्ति स्थान है।
जरूरत न मंदिर,मस्जिद जाने की,सुन हे इंसान है।
कर लो पितृ सेवा,यह जिंदा नारायण भगवान है।।
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"