ग़रीबी
ग़रीबी
हर इंसान की जिंदगी एक कहानी है
किसी की संघर्ष से भरी
तो किसी की चमचमाते सितारों के जैसे चमकदार।
गरीब इंसान अपने आत्मसम्मान को
हमेशा बचाना चाहता है
जबकि अमीरों की बस्ती
सिर्फ पैसों में होती है।
पिता के बिना जब घर आंगन सूना हो जाता है
मां की आंखों की चमक जब धुंधली हो जाती है
लब के हर लफ्ज़ सिसक से जाते हैं
हरी भरी फुलवारी मुरझा सी जाती है
तब ऐसा लगता है पूरा जहां बेगाना है
जो अपने होने का गुहार लगाया करते थे
अब वो कतराते हैं नज़रें मिलाने में भी
क्या मतलबी दुनिया की यही पहचान है
रंग रूप स्वरूप हर रूप बदल जाता है
जब गरीबी घर में बसने लगती है
जब अपने बेगाने हो जाते हैं
तब हर बात दिल को चुभती है।।
जब अपने बेगाने हो जाते हैं
तब हर बात दिल को चुभती है।