कपड़ा
कपड़ा
वो कपड़ा किसी की मुस्कान हो गया,
किसी का कल था, किसी का आज हो गया,
वो तोहफ़ा बन किसी ज़रूरतमंद का,
उसके लिए खुशियों का त्योहार हो गया!
कपड़ा ही तो था, पुराना-सा भी था,
पर किसी के लिए वो एक सपना-सा ही था,
कोई सोना, कोई हीरा जड़ा न था उसमें,
एक मामूली सूती, पर उसके लिए तो सोना ही था!
पहनकर वो नयी पोशाक नाच रही थी,
कपड़े को यूँ ही मंद-मंद ताक रही थी,
बेजान-सी उस मिट्टी में फिर जान आ गयी,
मन में फिर उसके ये बात आ गयी!
"मेरे जैसे न जाने कितने, कपड़े को तरसते हैं,
और किसी से दान की आशा रखते हैं!"
दानवीरों की टोली से, सीखी उसने एक अच्छाई,
थोड़ा सोची, थोड़ा समझी, फिर मंद-मंद मुस्कुराई!
"अब मैं भी पढ़-लिखकर खूब नाम कमाऊँगी,
फिर बनकर एक नयी सोच किसी के काम आउंगी,
कपड़ा हो या खाना, हर ज़रूरतमंद तक पहुँचाउंगी,
होती क्या है इंसानियत, सीखूँगी, सिखाऊँगी !
था तो एक कपड़ा ही, क्या कमाल कर गया,
एक दीया जलाकर, जग रोशन कर गया,
वो बेजान इंसान को इंसानियत सीखा गया,
किसी के लिए बेवजह था,
किसी के जीने की वजह बन गया!