चाँद
चाँद
सुबह आज मेरी आँख लगी थी
सारी रात मैं सो न पाया
चंद्रयान में बैठा था मैं
सपना मुझको ये था आया।
चाँद की सतह पर पहुंचा
झटके से मैं खा रहा था
गुरुत्वाकर्षण कम बहुत था
कूदा कूदा जा रहा था।
टहलने था वहां मैं निकला
गड्ढे बहुत बड़े बड़े थे
बर्फ ढके पत्थर बहुत थे
पहाड़ जैसे वो खड़े थे।
इतने में एक रौशनी
देखि मैंने बड़ी दूर से
बोली मैं ही चाँद हूँ
देखो न तुम घूर के।
समझो तुम नानके हो आये
आवाज में कुछ प्यार था
मामा हो तुम मुझको कहते
रिश्ते का दुलार था।
मैंने पूछा तुम इतने सुंदर
फिर इसमें ये क्यों दाग है
सूरज की किरणें न पड़ती
वो मेरा धुँधला भाग है।
एक जैसे तुम न रहते
पूछा ये क्या राज है
रोज रोज हूँ अलग दिखता
मुझको इसपर नाज़ है।
मैंने पूछा रात ही क्यों
दिन में तुम क्यों न आते
बोला दिन में सोता हूँ मैं
जैसे रात को तुम सो जाते।
इतने में अलार्म बज गया
नींद मेरी टूट गयी
चंदा मामा से ये बातें
अधूरी मेरी छूट गयी।