STORYMIRROR

Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

4.5  

Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

You shouldn’t cry

You shouldn’t cry

5 mins
38

इस मेल डॉमिनेटेड फील्ड में काम करना उस जैसी फीमेल के लिए आसान नहीं था।

लेकिन औरतें कहाँ हार मानती हैं भला? इसके पहले उसने कभी हार मानी हैं? सदियों से सर्वाइवल इंस्टिंक्ट के होते हुए कोई औरत आसानी से हार नहीं मानती… वह भी हार मानने वालों में नहीं थी…धीरे धीरे अपने व्यवहार और सीखने की ललक से अपनी जगह बनाने में वह कामयाब हो गयी…

आज जब वह पीछे मुड़ कर देखती हैं तब उसे अपने उन ख़ामोश संघर्ष के दिन याद आने लगते हैं। उसकी प्रोफेशनल लाइफ़ की छटपटाहट…उस वक़्त यह सब किसे बताती? नया शहर… हर ओर नये चेहरें…घर वालों की आसमान छूती उम्मीदें..अनुभव की कमी…लोगों का अविश्वास…इन सब बातों के बीच उसके पास वक़्त के साथ पानी के धार की तरह आगे बढ़ने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं था… बस…वह आगे बढ़ती गयी…

इंटरव्यू के दिन ही यह ऑफिस उसे बहुत अच्छा लगा था। एक तो बिल्डिंग का आर्किटेक्चर..हर ओर ग्रीनरी…एज्युकेशनल मीडिया वाला काम…जिसमे उसका टेक्निकल फैसिलिटीज़ की प्लानिंग, प्रोक्योरमेंट, ऑपरेशन एंड मेंटेनेंस का काम था।नौकरी अपनी स्पीड से चलने लगी। टेक्निकल आइटम्स तो कभी भी ख़राब हो सकते हैं तो कंटेंट क्रिएशन और ब्रॉडकास्ट के लिए प्लान बी को रेडी रखना…

ब्रिजिंग द डिजिटल डिवाइड के लिए दिन भर काम करने वाले प्रोफ़ेशनल्स…अब तो वह भी इन प्रोफेशनल लोगों में शामिल हो गई थी…डिजिटल एज में अब तो काम भी डेटा ड्रिवेन होने लगा था। डेटा एनालिसिस से डिसीजन मेकिंग और पॉलिसी इंटरवेंशन का काम आसान होने लगा। यह ऑफिस गवर्नमेंट के किसी भी ऑफिस की तरह कभी नही लगता था।क्योंकि शुरू से ही मीडिया का काम होता था तो इस ऑफिस में एक तरह से डायनाइज़्म था।हर और चहल पहल और बीच बीच में वन के सी टोन की आवाज़े आती थी जो स्टूडियो रिकॉर्डिंग की तैयारी बताती थी।

लेकिन जब से डेटा ड्रिवेन और डेटा एनालिसिस का काम होने लगा तब से यह ऑफिस भी बदलने लगा हैं। चारों ओर कॉर्पोरेट के लोग और बिल्कुल कॉर्पोरेट जैसा माहौल… हम गवर्नमेंट ऑफिशियल्स बिल्कुल अलग ही लगते थे। लेकिन फिर भी साथ साथ हँसी मज़ाक़ से माहौल को लाइट रखते हुए हम गवर्नमेंट के लोग भी टेक्नोलॉजी के साथ कॉर्पोरेट कल्चर के रंग में रंगने लगे और बढ़ता हुआ काम भी फास्ट ऐक्ज़ीक्यूट होने लगा।

बदलाव तो हर जगह होते हैं…कुछ दिनों से इस ऑफिस का माहौल चेंज होने लगा था। अब तो यहाँ दूसरे डिवीज़न के इस डिवीज़न पर डॉमिनेशन की बात होने लगी थी.. दूसरे डिवीज़न द्वारा इस डिवीज़न को कैप्चर करने वाली बात थी…उसने इसी डिवीज़न में जॉइन किया था..नैचुरली इसके लिए वह बिल्कुल तैयार नहीं थी…रिटायरमेंट के नज़दीक आने के बावजूद…जनरली रिटायरमेंट के पास आने पर लोग सब कुछ छोड़ देते हैं लेकिन इस तरह से उसके डिवीज़न को कैप्चर करने के मंसूबों के लिए वह तैयार नहीं थी…जिस किसी से भी यह सब बातें जब वह डिस्कस करती वही उसको समझाने लगता की मैडम रिटायरमेंट पर हो… जाते जाते क्यों इन पचड़ों में उलझ रही हो? मत पड़ो इन झमेलों में…और भी न जाने क्या क्या… यह बात उसे बेहद अजीब सी लगती थी… रिटायरमेंट में अपने डिवीज़न को बचाने को क्या पचड़ों में पड़ना हो गया?उलझना हो गया?

लोगों की सलाह थी…जो वेलविशर की तरह सलाह देते थे या बात करते थे। लेकिन क्या इन सब से आँखे मूँद लेना ठिक था? क्या यह उसके पोजीशन को शोभा दे रहा था? रिटायरमेंट पर हैं…अभी रिटायर तो नहीं हुयी हैं…अभी भी तो वह पोजीशन पर हैं…तो रिटायरमेंट के नाम पर इन सारे प्रॉब्लम्स से मुँह मोड़ लेना क्या ठीक होगा? नेक्स्ट जनरेशन स्टॉफ़ के सामने क्या एक्ज़ाम्पल सेट होगा?

नहीं, बिल्कुल नहीं…

अपने सीनियर से मिलकर ऑफिस की इस खींच तान को वह दूर करना चाहती थी और उसके लिए उसने कोशिश भी की…आजकल सर कुछ ज्यादा बिजी रहने लगे हैं…लेकिन आज शाम को मौका पाकर सर के केबिन में गयी...कुछ इश्यूज को डिस्कस करने के बाद उसने सर से बात करना शुरू किया... "हाँ.. पूरी बात बताइये…"

थोड़ा रुक कर उसने फिर से बोला, " सर, डॉक्टर शर्मा आजकल हमारे डिवीज़न में कुछ ज्यादा ही इंटरफेअर करने लगे हैं... "अरे, वह तो इस प्रोग्राम के कोऑर्डिनेटर हैं तो पूछेंगे न...उसमें क्या ग़लत हैं? सर के इस बात पर वह फिर कहने लगी, "सर यह बात नहीं हैं.. वे स्टाफ़ को पूछते रहते हैं.. बात यह हैं की वे मेरे स्टाफ को डायरेक्टली आर्डर देना शुरू करते हैं... वे मुझसे बात न करके डायरेक्टली मेरे स्टाफ से बात करते हैं और... सर मुझे बीच में रोकते हुए कहने लगे, "ठीक तो हैं उससे ऑफिस का काम फ़ास्ट भी तो होता हैं न?" "सर यह बात नहीं हैं… उन्होंने नया स्टाफ अपॉइंट किया हैं वह अपने स्टाफ को डेप्यूट करने लगे हैं...जो की पहली बार हो रहा हैं... मेरे स्टाफ़ का क्या? इसके पहले ऑफिस में कभी इस तरह से कोई काम नहीं हो रहा था।इस डिवीजन ने कौनसा काम कब रोका था? किसी ने कोई शिकायत भी नहीं की हैं..." 

सर रिलैक्स थे। मेरे तेज़ तेज़ बोलने से और मेरे प्रॉब्लम से जैसे उनको कोई लेना देना ही नहीं था। क्योंकि जिस ऑफिसर की मैं बात कर रही थी वह उनके दोस्त थे और वह उनकी कोई बात टाल नहीं सकते थे…चाहे दूसरा स्टाफ कितना भी परेशान हो…सर, अपने दोस्त डॉक्टर शर्मा जो उसके डिवीज़न को कैप्चर करने के मंसूबे बना रहे थे…उनको बहुत ज़्यादा फ़ेवर किया करते थे.. उसके लिए दूसरी बड़ी लाइन को काट कर छोटा करते थे। फिर क्या? डॉक्टर शर्मा का ईगो बूस्ट होता था।

सर का क्या?

सर को बस काम होना माँगता था।बस और कुछ नहीं…उनको कोई लेना देना भी नहीं था… बस काम…और काम…आजकल के इस माहौल में उसको तो कभी कभी ऐसे लगता था की सर को कोई जिये या मरे इसकी परवाह नहीं

लेकिन वह एक फीमेल ऑफिसर थी। इस मेल डॉमिनेटेड फील्ड में काम करते हुए अपने हार्ड वर्क से उसने अपनी एक स्पेस बनायी थी। यह कोई आसान काम नहीं था…इतने सालों का एक्सपीरियंस को वह यूहीं नहीं जाने देगी…सर का डॉक्टर शर्मा को इस तरह से शील्ड करना…उनके हर सही ग़लत काम को नज़रअंदाज करना…उस जैसे बाक़ी लोगों की कोई बात ना सुनके डॉक्टर शर्मा को ही सपोर्ट करना…उसको अब यह ठीक नहीं लग रहा था। आज की मीटिंग के बीच उसकी रुलाई निकल गयी…इतने हार्ड वर्क के बाद भी सर अपने दोस्त डॉक्टर शर्मा को ही फ़ेवर कर रहे थे।मीटिंग ख़त्म होने के बाद वह वापस अपने केबिन में आकर सोचने लगी। क्या करे? कैसे वह इस जाल से निकले?

अपनी नौकरी…अपनी पोजीशन…और आगे आने वाला रिटायरमेंट…

जो भी हो..उसने wait and watch करना चाहिए…लेकिन वह तो एक फाइटर थी…वह एक मेल डॉमिनेटिंग फील्ड में सर्वाइवल इंस्टिंक्ट वाली एक महिला थी…She shouldn't cry…

लेकिन औरतें हर तरह से अपने प्रॉब्लम्स सॉल्व कर ही लेती हैं…कभी हँसकर तो कभी रोकर…देखते हैं उस मीटिंग के बाद क्या चीज़ें बदलती हैं?

डॉक्टर शर्मा को उसके रिटायरमेंट तक शांत रहना होगा और शायद सर को भी…





Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract