नये ज़माने की पुरानी बातें …
नये ज़माने की पुरानी बातें …
”अभी नहीं…सही नहीं…” धीमी आवज़ में लड़की कह रही थी…
“लेकिन..अभी ही…सब सही हैं…”लड़का कन्विंसिंगली कह रहा था।
“नहीं नहीं…बर्जिनिटी की बात हैं…समाज की बात हैं…घर वालों की इज्जत की बात हैंलड़की भी कनविंसिंगली कहने लगी।
अब लड़का जो पार्क के एक कोने की घनी झाड़ियों में लड़की के साथ बैठा हुआ था या यूँ कहे अधलेटा था,एकदम बैठते हुए कहने लगा, “ अरे, तुम नए ज़माने की लड़की हो .. जिंदगी को खुल कर जियो…”वह एकदम उठते हुए बोली, “यह वर्जिनिटी और इज्जत वगैरह?”लड़का पुरज़ोर तरीक़े से उसे अपने से सटाते हुए कहने लगा, “ वे सब दकियानूसी और पुराने जमाने की बातें हैं जो किसी काम की नहीं हैं…अब यह नया जमाना हैं..
नहीं नहीं… सब सही कहते हुए क्या लड़का पूरी बात कह रहा था?आज भी सब वही हैं कहते हुए क्या लड़की आधी बात कह रही थी?
या फिर तुम लड़कों के लिए सदियों से सब सही हैं कहते हुए क्या लड़की दूसरी आधी बात कह रही थी? हाँ, मेडिकल साइंस और अवेयरनेस से चीजे बदली हैं ज़रूर…और प्रेम तो प्रेम हैं…लेकिन मॉरैलिटी का क्या?वह तो अभी भी वही हैं…मॉरैलिटी की कोई एक्सपायरी डेट होती हैं क्या?
वह एक अधीर यूथ था…फ़न लविंग और एंजॉयमेंट की बातें समझने वाला…लेकिन लड़की के इस सवाल ने उसे क़ायल कर दिया…
इस सवाल का कोई जवाब लड़के के पास नहीं था…
