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Kunda Shamkuwar

Abstract Others

4.8  

Kunda Shamkuwar

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मुलाक़ात

मुलाक़ात

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दिल्ली में रहते रहते कब मैं मराठी से हिंदी भाषा में रच बस गयी इसका पता ही नहीं चला।बहुत बार ऐसा भी होता था की महाराष्ट्रीयन लोगों से भी मेरी मराठी में शुरू हुयी बातचीत थोड़े ही देर में हिंदी की बातचीत में बदल जाती थी…

अख़बार से दिल्ली के एक फेमस ऑडिटोरियम में विजय तेंडुलकर जी लिखित नाटक के मंचन का पता चला तो झट से QR कोड स्कैन करके रजिस्टर कर लिया।

आज शाम को हम दोनों फ्रेंड्स नाटक देखने गयी… हम मेन गेट से अंदर गये…और भी लोग थे जो ऑडिटोरियम के अंदर जाने का इंतज़ार कर रहे थे। हम भी इधर उधर देखने लगे। अचानक मेरी ओर एक आवाज़ आयी, "आप सुधा हो न?" एक व्यक्ति मुझ से मुख़ातिब था। मैं अचकचाकर उसकी ओर देखने लगी। दूसरे ही क्षण मैंने कहा," यू आर शरद, राइट?" "येस…"

"अरे, हम कितने सालों के बाद मिल रहे हैं…" कहते हुए झट से उसने पत्नी की ओर मुखातिब होकर कहा, "यह सुधा हैं…हमारे साथ 12th में थी…"  मैंने कहा, "मैडम, हम करीब करीब 30-35 सालो के बाद मिल रहे हैं…"

शरद की पत्नी ने स्माइलिंग फेस से कहा, "हेलो,सुधा, आय एम प्राची…ग्लैड टू मीट यू…"

"प्राची जी नमस्कार…"

दिल्ली में मराठी नाटक देखना अपने आप में ही एक अलग सा एक्सपीरियंस था…सब लोग वहाँ नाटक के पोस्टर के साथ फोटो खिंचवाने में लगे थे। शरद और प्राची भी फोटो खिंचवाने के लिए इधर उधर देखने लगे… मैंने कहा, "लाइए,  मैं इस खूबसूरत कपल का फोटो लेती हूँ… भई देखिए, मॉडल्स अगर खूबसूरत हैं तो फोटोग्राफर भी बुरा नहीं है… " हम सभी लोग हँस पड़े… और इसी के साथ उन दोनों की मुस्कुराती फोटो मेरे फ़ोन में सेव हो गयी…

थोड़ी ही देर में ऑडिटोरियम में एंट्री हो गयी.. हम लोग अपने अपने सीट पर बैठ गये। नाटक शुरू होने में थोड़ा टाइम था…मैंने शरद को जाकर कहा,"चलो, हम दोनों एक फोटो लेकर अपने कॉलेज वाले ग्रुप में शेयर कर देते हैं…" उसने पास खड़े एक व्यक्ति को अपना फ़ोन देते हुए फोटो लेने की रिक्वेस्ट की…फोटो के बाद हम अपनी अपनी सीट पर बैठ गये…

थोड़ी ही देर में नोटिफिकेशन की टूंग टूंग होने लगी। कॉलेज वाले ह्वाट्सऐप ग्रुप में मैसेज थे…ग्रुप में हमारे फोटो पर कमेंट्स में

कोई कुछ लिख रहा था…विकास ने स्माइली के साथ लिखा, "ब्रो दिनों दिन यंग होते जा रहे हो…" 

एक नास्टाल्जिया की तरह कॉलेज के वे सारे फ्रेंड्स के साथ सारे गोल्डन मेमोरीज़ वाले दिन मेरे आँखों के सामने फिरने लगे…

थोड़ी देर में नाटक स्टार्ट होने की पहली घंटा हुयी… व्हाट्सऐप बंद कर फ़ोन साइलेंट मोड में रख दिया…

लेकिन थोड़ी ही देर में फ़ोन फ़्लैश हुआ…फिर से मेसेज का नोटिफिकेशन दिखा। उसी ग्रुप का मेसेज था…

सालों के बाद की इस इत्तफ़ाक़न मुलाक़ात ने कितनी सारी चीजें बदल दी थी…थोड़ी ही देर में नाटक शुरू हुआ। विजय तेंडुलकर जी के उस बोल्ड सब्जेक्ट वाले नाटक को देखना अपने आप में एक अलग लेवल का एक्सपीरियंस था… 

नाटक ख़त्म होने पर बाहर वापसी के लिए मैं कैब बुक कर रही थी…रात ज़्यादा होने पर कैब बुक होने में टाइम लग रहा था…तभी एक कार अचानक हमारे सामने से गयी लेकिन झट से आगे जाकर रुक गयी। प्राची हाथ बाहर निकालकर सुधा सुधा कहते हुए आवाज़ दे रही थी। हम दोनों झट से वहाँ पहुँचे और कार में बैठ गए…

शरद की और मेरी ऐसे ही बाते होने लगी…

कैंपस के पास आते ही मैं उसको घर के डायरेक्शन देने लगी… मेरे घर में चाय पीकर जाने की बात पर प्राची कहने लगी, "अभी नहीं…माँ घर पर हैं…शी इज नॉट वेल…"

थोड़ी ही देर में मेरा घर आ गया। चाय के लिए दोबारा बोलने पर नेक्स्ट टाइम आएँगे कहते हुए शरद और प्राची निकल गये…

आज की इस शाम को विजय तेंडुलकर जी के बोल्ड सब्जेक्ट वाले उस नाटक को देखना…सालों बाद कॉलेज के क्लासमेट का मिलना…कॉलेज डेज़ की लगभग भूल चुकी उन सुनहरी यादों का फिर से ताज़ा होना…सचमुच यह शाम बेहद ख़ास थी…



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